दोतरफा सरहदपर क्या धूम मची है गश्तोंकी
कहानियाँ यहाँ हमने खूब रची है रिश्तोंकी
खोजती रही हो तुम आशियाने दुनियाभरके
इसी शहरके पिछवाडे, वहीं गली है रिश्तोंकी
जाहिर ये है के अब तो, हम दोस्त नहीं रह पाएंगे
बात यहाँ है अपनोंकी, बात चली है रिश्तोंकी
रोक नहीं अब पाऊंगा मैं ये बहाव इन अश्कोंका
सदियोंसे इन नदियोंमेंही नांव चली है रिश्तोंकी
ले-देके मिलकियत बस इतनी जुटा पाया हूं मैं
चंद ख्वाब सजे हैं आँखोंमें और नमी है रिश्तोंकी
अमीर बडा कहलाता, भरे पडे खजाने पुश्तोंसे
मेहेरबाँ जिंदगीभी है, सिर्फ कमी है रिश्तोंकी
क्या बटवारोंकी किश्तोंसे, बच निकलेंगी ये इमारतें
हाय! फिसलते रेतपे हमने नीव रखी है रिश्तोंकी
जरा जमींपे आकर देखो, क्या रखा है जन्नतमें
इन्सानोंकी बस्तीमें बारात सजी है रिश्तोंकी !
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