यह लम्हा

दहलीजपर मुझे देख असमंझसमें तुम
अचंबित हो निहारती, बोलती है गुम
चाहता हूँ अब हम रहें कुछ गुमसुम
संदूक सवालोंकी अभी खोलना नहीं तुम

इंतजारमें कबसे यह लम्हा खडा था
भीडमें पलोंकी यह तनहा बडा था
आँधीमें शककी गया हडबडा था
अरमाँ इसे हमसे ज्यादा बडा था

दूरीकी बातें,बिरहाकी रातें.. रहने दें,
ये नैना हमारे यूँही आज बहने दें
इस लम्हेको अपने दिलकीभी कहने दें
उसे भेंटमें चंद टीसके गहने दें

होठोंके किनारोंपर तबस्सुमकी नैया
हिचकोले खाती, है असुवन खिवैया
लिहाजमें उसके थामें निगाहोंसे बैंया
के लम्हाभी कहे, क्या सजनी.. क्या सैंया !

2 प्रतिसाद to “यह लम्हा”

  1. shrikrishnasamant Says:

    “दूरीकी बातें,बिरहाकी रातें.. रहने दें,
    ये नैना हमारे यूँही आज बहने दें”

    अति सुंदर खूप दिवसानी अशी हिंदी कविता वाचायला मिळाली
    सामंत

  2. anonymous Says:

    lovely poem

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