ख्वाब

कई दिनोंसे ख्वाब ये देखा है मैंने
खुदहीको तुम बनते देखा है मैंने
इन आँखोंसे है देखा उन आँखोंमें
उस मुझको जो तुमने देखा है मुझमें…

इठलाती चितवन तबस्सुमके ताने
अदाओंके नश्तर ये मासूम बहाने
हवाएंभी अब यूं लगीं हैं सताने
लाईं है महक हमें फ़िर लुभाने

दिनभर ये तुम्हारे दीदारके वहम
रात ख्वाबोंमें फिर तुम और हम
कहनेको दो हैं पर हमारी कसम
बताओ जरा जुदा कब थे हम !

माना कि अबभी बहोत  फासलें हैं
किस्मतके देखेंगे क्या फैसलें हैं
उमंगोंके नित ये नयें घोंसलें हैं
पाएंगे तुमको बुलन्द हौसलें हैं

6 प्रतिसाद to “ख्वाब”

  1. shrikrishna samant Says:

    सुंदर! बहोत सुंदर! इसिको कहते है रुवाब.
    क्या बात है! मैने आपकी ये सुंदर कलाकृतीका मराठीमे अनुवाद किया, तो आपको कोई इतराज तो नही?

  2. वाचून बघा Says:

    सामंत साहेब, प्रोत्साहना बद्दल आभारी आहे…

    अवश्य, होउन जाऊ दया अनुवाद – माझा बहुमान समजेन !

  3. manvinder bhimber Says:

    bahut hi achcha likha hai…bhaaw bhi achach hai….
    achcha laga

  4. वाचून बघा Says:

    मनविंदरजी,

    इस रचनासे आपको आनंद मिला इसकी मुझे खुशी है , धन्यवाद !

  5. anonymous Says:

    nice wordings, especially the confidence at the end.

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