कई दिनोंसे ख्वाब ये देखा है मैंने
खुदहीको तुम बनते देखा है मैंने
इन आँखोंसे है देखा उन आँखोंमें
उस मुझको जो तुमने देखा है मुझमें…
इठलाती चितवन तबस्सुमके ताने
अदाओंके नश्तर ये मासूम बहाने
हवाएंभी अब यूं लगीं हैं सताने
लाईं है महक हमें फ़िर लुभाने
दिनभर ये तुम्हारे दीदारके वहम
रात ख्वाबोंमें फिर तुम और हम
कहनेको दो हैं पर हमारी कसम
बताओ जरा जुदा कब थे हम !
माना कि अबभी बहोत फासलें हैं
किस्मतके देखेंगे क्या फैसलें हैं
उमंगोंके नित ये नयें घोंसलें हैं
पाएंगे तुमको बुलन्द हौसलें हैं
07 09 2008 येथे 6:55 सकाळी |
सुंदर! बहोत सुंदर! इसिको कहते है रुवाब.
क्या बात है! मैने आपकी ये सुंदर कलाकृतीका मराठीमे अनुवाद किया, तो आपको कोई इतराज तो नही?
07 09 2008 येथे 10:44 सकाळी |
सामंत साहेब, प्रोत्साहना बद्दल आभारी आहे…
अवश्य, होउन जाऊ दया अनुवाद – माझा बहुमान समजेन !
07 09 2008 येथे 2:29 pm |
bahut hi achcha likha hai…bhaaw bhi achach hai….
achcha laga
09 09 2008 येथे 12:43 सकाळी |
मनविंदरजी,
इस रचनासे आपको आनंद मिला इसकी मुझे खुशी है , धन्यवाद !
23 09 2012 येथे 6:44 pm |
nice wordings, especially the confidence at the end.
24 09 2012 येथे 12:00 सकाळी |
Glad you liked it !