रूप कविताके

जीवनमें कविता,
हर रुपमें मिलती है
कभी भावुकताकी छायामें, कभी
दर्शनकी धूपमें खिलती है.
कभी सहास्य सखी चंद्रमुखी,
अनजान अधोवदना, कभी दुखी
कभी बन बहना पहन गहना
बन दुहिता, कभी पितृवदना !
ममताभरी कभी लोरी दुलारी
पड गलबैंया मारे किलकारी
तबस्सुममें वह यौवनके खिले
सिसकती कभी झुर्रियोंमें  मिले..
कहे खुलेआम मनकी,आंखोही आंखोंमें
कनखियोंसे करे बात कभी सलाखोंमें
आजाद परिन्दोंमें ,सरहदकी गश्तोंमें
हालातके बंधोंमें, ख्वाबोंकी किश्तोंमें.
परिचित लिखावटकी अनखुली चिट्ठियोंमें
किसी नवजातकी अधखुली मुट्ठियोंमें..
अनबुझी चाहोंकी अनसुनी आहोंमें
निष्ठुर थपेडोंमें,सहलाती बाहोंमें
रदीफोंके मुहल्लोंमें,काफियोंके काफिलोंमें
अपने हिस्सेके अंधेरोंमें,गैरोंके उजालोंमें
आँखोंकी नमीमें, अपनोंकी कमीमें
कविता पनपती है, दिलोंकी जमींमें !

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