समयकी नदीके तटपर
चिंतन कर , एकांतमें बैठकर
कर रहा था प्रतीक्षा,
नववर्षकी दहलीजपर.
सहसा, कालके प्रवाहसे निकलकर
संमुख खडा हुआ गतवर्ष उभरकर.
और करने लगा मुझसे निवेदन.
याद दिलाने, मेरेही कुछ वचन.
‘क्या हुआ उनका,
मेरी पूर्वसंध्यापर
जो किये थे तुमने वादे-
कुछ मुझसे, अन्य खुदसे,
कईं औरोंसेभी.
लिये थे कुछ निर्णय
कुछ मेरे, एक आध खुदके,
कईं औरोंके विषयमेंभी ?’
मैंने हँसकर कहा, ” वादे, निर्णय, वचन ?
किस जमानेके गतवर्ष हो तुम !
दिल बहलानेका एक तरीका है,
हर नववर्षसे मेरा यही सलीका है
कई वर्षोंकी अपनी तपस्या है
तुमने इसे गंभीरतासे लिया,
यह तुम्हारी अपनी समस्या है !”
उसने फिर पूछही डाला,
‘यह जो तुम्हारे पास है थैला
उसमें आखिर है क्या भला ?’
मैंने कहा,
” वही, हर सालका मसाला,
नववर्षके लिये- नये निर्णय,
नये वचन, नयी माला ! “
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