मुखौटे

आपके विषयमें नहीं जानता,
पर मेरे पास हैं बहुतसे
सालोंसे हूँ इन्हें पहनता
ये हो गए हैं अब अपनेसे

जबसे होश सम्हाला है,
इन्हींके बलपर गुजारा है
जबभी दुविधामें पैर डाला है
इसी सुविधाका सहारा है !

रोज इन्हें साथ ले निकलता हूँ,
जाने कब  कौन काम आए !
समय परखके ओढ़ता हूँ,
जिससे भी काम बन जाए.

झाँक भीतर आजकल मैं
पानी है जहाँ बहुत गेहरा
अपनेही मुखौटोंकी  भीड़में,
खोजूँ अपना असली चेहेरा

इनके प्रयोगमें हूँ माहिर,
भई, बरसोंकी तपस्या है,
न हो जाऊं खुदसेही जाहिर
बस, यही इक समस्या है !
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